पुराना
भारत बनाम न्यू
इंडिया
15 अगस्त
2017 को लाल किले
की प्राचीर से
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
भारत को 2022 तक
‘न्यू इंडिया’ बनाने
के लिये दृढ़
संकल्प लिया। प्रधानमंत्री ने
‘न्यू इंडिया’ बनाने
के लिये भारत
से गरीबी, भुखमरी,
बेरोजगारी, आतंकवाद, भ्रश्टाचार जैसी
समस्यायें खत्म करने
के साथ-साथ
सभी नागरिकांे को
स्वच्छ पेयजल, सभी को
आवास, सड़क, सुरक्षा,
दो पहिया से
लेकर चार पहिया
वाहन, एयरकंडिषनर, रोजगार
आदि सुविधायें उपलब्ध
कराने का लक्ष्य
रखा है। इन
लक्ष्यों की प्राप्ति
के लिये प्रधानमंत्री
2014 में सत्ता में आने
के बाद से
ही काम कर
रहे है जैसे
प्रधानमंत्री आवास योजना,
प्रधानमंत्री स्वच्छ पेयजल योजना,
बेरोजगारी दूर करने
के लिये प्रधानमंत्री
कौषल विकास योजना,
स्किल इंडिया, बेटी
बचाओ-बेटी पढ़ाओ,
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण
योजनायें, मेक इन
इंडिया, डिजीटल इंडिया आदि।
इतना ही
नहीं प्रधानमंत्री ने
न्यू इंडिया के
बहाने भारत को
स्मार्ट भारत बनाने
के भी बात
कही है। सम्पूर्ण
भारत को डिजिटल
बनाने के लिये
डिजिटल इंडिया योजना भी
चलायी जा रही
है। देष की
2.5 लाख ग्राम पंचायतों को
भारतनेट परियोजना के तहत
जोड़ा जा रहा
है। यह डिजिटल
इंडिया बनाने की दिषा
में ही काम
चल रहा है।
इसके साथ स्मार्ट
इंडिया बनाने के लिये
स्मार्ट सिटी बनायी
जा रही है।
ये सब न्यू
इंडिया बनाने का ही
ताना-बाना बुना
जा रहा है।
न्यू इंडिया के
अन्तर्गत प्रधानमंत्री ने किसानों
की आय दोगुना
करने की बात
भी कही है
तथा अर्थव्यवस्था को
100 वर्श आगे ले
जाने की बात
कही जा रही
है। अब देखना
यह है कि
क्या पुराने भारत
से न्यू इंडिया
बनाने का सपना
2022 तक हकीकत ले पायेगा
या नहीं?
न्यू इंडिया
एक प्रयोग ही
है जिसकी सफलता
देष को आगे
ले जा सकती
है। ऐसे प्रयोग
प्रधानमंत्री मोदी 2014 से ही
करते आ रहे
है। उनके इन
प्रयोगो मेे सर्वप्रथम
नाम आता है-
नोटबंदी या विमुद्रीकरण
का। नोटबंदी से
न केवल काले
धन पर चोट
पहुंची वरन सीमा
पार से होने
वाली घुसपैठों में
भी कमी आयी,
कष्मीर घाटी षान्त
हो गयी। देष
में षान्ति बनी
रहे, ये न्यू
इडिया का एक
विजन ही है।
अगर पुराना
भारत बनाम न्यू
इंडिया की बात
करे तो देष
अभी भी विष्व
से 50 साल पीछे
चल रहा है।
हमने विज्ञान में
तरक्की की, ये
अच्छी बात है
पर देष में
भुखमरी, बेरोजगारी, गरीबी आज
भी चर्म स्तर
पर है तो
क्या ये अच्छी
बात है। अभी
कुछ ही दिनों
पहले एक समाचार
पत्र के माध्यम
से ज्ञात हुआ
कि एक 19-20 वर्शीय
लड़का भुखमरी से
मौत की नींद
सो गया और
हैरानी वाली बात
यह है कि
2003 में उसके माता-पिता की
मृत्यु भी भुखमरी
से हुई थी।
14 साल बीत जाने
के बाद भी
देष से भुखमरी
मिट नहीं पायी।
ये तो आंकड़ा
केवल एक ही
है क्योंकि समाचार
प़त्रों के माध्यम
से यह बात
सुर्खियों मे रही।
अभी हाल ही
में अन्तर्राश्टीय खाद्य
निगम द्वारा ग्लोबल
हंगर रिपोर्ट जारी
की गयी जिसमें
भारत की भुखमरी
स्थिति 100वे पायदान
पर है जबकि
भारत के पड़ोसी
देष चीन की
यह स्थिति मात्र
29वें स्थान पर
है। पिछले वर्शाे
में यह स्थिति
110वें स्थान पर थी
परन्तु इस वर्श
100वे पायदान पर।
यह तो सन्तोशप्रद
बात है पर
100वें पायदान से पहले
पायदान पर आना
अगले 5 वर्शों में सम्भव
नहीं लगता।
देष में
गरीबी और अषिक्षा
का आलम ये
है कि देष
का हर चौथा
व्यक्ति गरीब और
हर पांचवा व्यक्ति
अषिक्षित है। मोदी
जी अगले 5 वर्शों
में देष से
गरीबी मिटाना चाहते
है पर आंकड़ों
की ओर गौर
करे बड़े ही
दुःखद आंकड़े हम
सभी के समक्ष
प्रस्तुत होते है।
आज भी देष
मेे लगभग 22 प्रतिषत
जनसंख्या गरीबी रेखा से
नीचे जीवन यापन
कर रही है।
देष भी गरीबी
का स्तर विचार
योग्य है। इसका
एक प्रमुख कारण
अषिक्षा भी है।
अगर आकंड़ो पर
गौर करे तो
देष की 52 प्रतिषत
गरीब जनसंख्या ऐसे
पांच राज्यों में
रहती है जिनकी
सीमायें आपस में
जुड़ी हुई है
और ये 5 राज्य
है- उत्तर प्रदेष,
बिहार, मघ्य प्रदेष,
इारखण्ड अैर छत्तीसगढ़।
लगभग 265 मिलियन गरीब जनसंख्या
में 142 मिलियन गरीब जनता
यहां निवास करती
है। अकेले बिहार
में जितनी गरीब
जनता निवास करती
है उतनी ही
गरीब जनसंख्या दक्षिण
के चार राज्यों
कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेष, तमिलनाडु
और केरल को
मिलाकर रहती है।
इनकी संख्या लगभग
35.2 मिलियन बतायी जाती है।
इसके साथ ही
भारत के नेता
गरीबी की रेखा
निर्धारण में बेफिजूल
की बयानबाजी करते
रहते है। पिछले
2-3 वर्श पूर्व ही बात
है कि संसद
में गरीबी का
निर्धारण करने के
लिये किसी ने
थाली के रूपये
20 बताये तो किसी
ने 30 पर एक
महोदय ऐसे भी
निकले जिन्होने इन
सबकी हद पार
करते हुए इसे
मात्र 10 रूपये कर दिया।
सब थाली को
लेकर मजाक बनाते
रहे पर किसी
का भी ध्यान
इस ओर आकर्शित
नहीं हुआ कि
देष से गरीबी
कैसे समाप्त की
जा सकती है?
देष में
अषिक्षा की बात
करी जाये तो
देष का हर
पांचवा नागरिक अषिक्षित है।
रिपोर्टो एवं सर्वों
से ज्ञात होता
है कि सरकारी
विद्यालयों में पढ़ने
वाले बच्चे जो
कि कक्षा 5 मे
अध्धयनरत है, कक्षा
2 की पाठ्यपुस्तक पढ़ने
में असमर्थ है।
क्या सरकारी विद्यालयों
मेे पढ़ाई नहीं
होती या फिर
वहां के षिक्षक
अयोग्य है? उत्तर
दोनोें का ही
न में आता
है क्योंकि आज
के समय में
अयोग्य षिक्षक षिक्षण कार्य
के लिये चुना
नहीं जा सकता
और चुने हुए
षिक्षक पढ़ाते नहीं, ऐसा
कहीं होता नहीं।
इस अषिक्षा की
जिम्मेदार हमारी सरकारे है,
उनकी नीतियां है
क्योंकि वे षिक्षक
भर्ती तो करते
है षिक्षण कार्य
के लिये परन्तु
ये षिक्षक कार्य
करते है मिड
डे मिल का,
चुनाव का, एवं
अन्य औपचारिकतायें। ऐसे
में सरकारी विद्यालयों
के षिक्षक षिक्षण
कार्य ठीक प्रकार
से नहीं कर
पाते। सरकार को
चाहिये इस पर
गम्भीरता से विचार
करे क्योकि हमने
हमेषा से ही
देखा है कि
प्राइवेट विद्यालय का पढ़ा
बच्चा हर कार्य
में आगे रहता
है। इसका कारण
यह है कि
वहां पर ऐसा
माहौल का निर्माण
किया जाता है
और षिक्षक को
केवल षिक्षण कार्य
ही सौपा जाता
है।
प्रधानमंत्री ने न्यू
इंडिया में देष
से बेरोजगारी मिटाने
को कहा है।
इसमें कोई संदेह
नहीें है कि
इस दिषा में
सरकार अनेक योजनाओं
द्वारा कार्य कर रही
है। सरकार प्रत्येक
व्यक्ति को स्वरोजगार
के लिये प्रेरित
कर रही है
और इन योजनाओं
के माध्यम से
सरकार ने हर
वर्श 1 लाख रोजगार
देने को कहती
है परन्तु सच्चाई
यह है कि
सरकार को अभी
तक इस पैमाने
पर केवल षून्य
ही प्राप्त हुआ
है। अगर यही
स्थिति आगे भी
जारी रही तो
न्यू इंडिया बनाने
मे अभी बहुत
अधिक वक्त लगेगा।
न्यू इंडिया
अर्थात ऐसे सपनों
का भारत जहां
सब कुछ विकसीत
हो। सड़के उन्नत
हो, कहीं भी
जाम की स्थिति
न उत्पन्न हो,
यात्राये सुरक्षित हो, लोगों
को किसी प्रकार
का भय न
हो या ये
कहा जाये कि
राम राज्य स्थापित
हो जाये तभी
प्रधानमंत्री का न्यू
इंडिया विजन सार्थक
हो सकता है।
वास्तविकता में जाया
जाये तो यह
समय आने में
अभी कितना वक्त
लगेगा, यह कहना
पुराने भारत को
देखते हुए सम्भव
नही है। पर
एक बात तो
निष्चित है कि
प्रधानमंत्री मोदी के
इस प्रयास से
देष की अर्थव्यवस्था
को बहुत अधिक
बल मिलेगा और
देष दुनिया की
विभिन्न महाषक्तियों को पछाड़ते
हुये एक बार
से विष्व गुरू
बन जायेगा।